कोरोना: दुनियाँ के लिए अभिशाप भारत के लिए वरदान
आज दुनियाँ के कुछ छिटपुट हिस्सों को छोड़ दिया जाय, तो पूरी दुनियाँ कोरोना से जंग लड़ रहीं है। कल तक दुनियाँ के देशों की जो सेना, लड़ाई के लिए तैयारी में लगी रहती थी आज अपने-अपने देश में लाशों को ठिकाने लगाने में जुटी है। अपने आप को विकसित कहने वाला यूरोपियन देश जो कभी हमसे सही मुंह बात नहीं करते थे आज उनको लाश ठिकाने लगाने के लिए जगह नहीं मिल रहे है। बात अगर ब्रिटेन की करे, एक वक्त था जब उनके साम्राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था आज साम्राज्य दूर राज्य तक सुरक्षित नहीं है,। बात - बात पर आँख तरेरने वाला अमेरिका लाश ढ़ोने में लगा है और भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहा है।
बात अगर पड़ोसी मुल्क चीन की जाय, जो इस कोरोना महामारी का जन्म दाता है भले ही इस महासंकट से उबर गया लेकिन दुनियाँ इसे शक के निगाह से देख रही है। ये बीमारी मानव निर्मित है या प्रकृति प्रदत्त ये एक अलग बहश का विषय है , लेकिन इस पूरे प्रकरण में हम कहाँ खड़े है।
कोरोना महामारी में भारत किस स्थिति
देश पीड़ित ठीक हुये मरे
अमेरिका 401636 22476 12905
स्पेन 146690 48021 14555
इटली 135586 24392 17127
जर्मनी 107659 31432 2017
फ़्रांस 78167 19337 10328
ब्रिटेन 55242 ------ 6159
चीन 81802 77279 3333 संदिग्ध
भारत 5274 411 149
(ये सारे आकडे 08/04/2020 तक के है )
अब जरा ऊपर के आकड़ों को देखें और इनके जनसंख्या पर विचार करे।
केवल एक चीन ही ऐसा देश है जिसकी आवादी भारत से ज्यादा है।
अब जरा भारत की बात कर लेते है। ऊपर जीतने भी देश है अगर चीन को छोड़ दिया जाय तो सभी देश को मिलाकर जितनी जनसंख्या होगी, शायद अकेले भारत की जनसंख्या उससे ज्यादा है। अगर मौत की बात करें तो जहां सबको मिलाकर 60000 के आसपास है वही भारत का 149. क्या रेसियों आया आप खुद हिसाब लगा ले।
हम क्यों बचें है
World Health Organization ने माना हमारा रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। अब ये सवाल उठता है क्यों ज्यादा है? क्या हम पौष्टिक आहार ज्यादा लेते है? ये कैसे संभव है, अपने देश में तो सही से अभी भी सबको भरपेट भोजन नसीब नहीं मिलता, ये मैं नहीं कह रहा बल्कि WHO कह रहा है। फिर क्या कारण है ?
सादा जीवन उच्च विचार
हमारे पास एक समृद्ध सनातन जीवन शैली है, जो हमें अपने ऋषि-मुनियों से मिला है। जिनके कुछ मूल सिद्धांत है। सात्विक जीवन जीना, सारे संसार को अपना कुटुंब मानना, उचित दायरे में रहकर धनोपार्जन करना, अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहना।
कहाँ खरे है हम ? खान - पान के मामले में निश्चित रूप से हम पारंपरिक भोजन पर निर्भर है। देश की बड़ी आवादी अभी भी शारीरिक मेहनत करते करते है, शायद यही हमें बचा रखा है। कहते है शरीर को जितना शुख मिलता है रोग प्रतिरोधक क्षमता उतनी कम होती है। लेकिन जो मानव मूल्य का पालन करने के लिए हमें हमारे ऋषियों ने हमे निर्देश दिया था क्या हम उसका पालन कर रहे है? हम पैसे के लालच में एक अंधे दौर में शामिल है। पत्नी - बच्चे सब कुछ भूल चुके है। हम सब कुछ पैसे के बल पर खरीद लेना चाहते है।
दुनियाँ कहाँ खड़ी है। गलत खान-पान। ऐसों-आराम की ज़िंदगी। क्या- क्या नहीं इन्होंने बना डाले। परमाणु बम, हाइड्रोज़ेन बम, फाइटर प्लेन, न जाने क्या-क्या बनाकर दुनियाँ को गुमराह करते रहे और आँख दिखाते रहे। जब एक वायरस ने हमला किया तो मुंह ढकने के लिए मास्क नहीं उपलब्ध करबा पा रहें है। तैयारी किसी और से करते रह गए, दुश्मन कोई और निकला।
भारत को मौका
जब भी क्कोई त्राशदी आती है सबके लिए मुसीबत नहीं लाती, कुछ को फायदे भी मिलते है। आजतक जो देश युद्ध के लिए हथियार बनाकर हमें बेचते रहे आज कोरोना से बचने के लिए हमारी तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। चीन के द्वारा दुनियाँ को सहायता का ऑफर किए जाने के बाबजुड़ उसे शक की नजरों से देखा जा रहा है। अब देखना है हमारी सरकार इस मौके का फाइदा उठाती है।
कोई शक नहीं केंद्र में मजबूत इच्छा शक्ति वाली सरकार है, जिसको भारी जनसमर्थन भी प्राप्त है। जरूरत है सही वक्त पर सही निर्णय लेने की, कोई दो राय नहीं इसमें जनता का समर्थन भी आवश्यक है। कोरना का असर तो भारत पे भी पड़ेगा लेकिन जितना आर्थिक असर पड़ेगा थोड़ा बहुत कमोवेश सरकार दवाई के निर्यात और पेट्रोल के गिरे हुये दामों से निकाल लेगी।
जिन सनातन मूल्यों को हम छोड़ चुके थे आज प्रकृति ने हमें उन मूल्यों को अपनाने के लिए घरों में कैद कर दिया है। आज सारी दुनिया हमारी सभ्यता नमस्कार को अपना रही है। हम इसे कितना फैला सकते है ये हमारे ऊपर निर्भर करता है।
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Hamare yahan urine release karne ke baad bhi apne body jaise ki hath muh dhone ki parampara hua karti thi jo ab bilupt hoti jaa rahi hai, rajasawla naari khana nahi banati thi, un dino ke liye unko quarantine kiya jaata tha