क्या हमें अपने इष्टदेव का दर्शन संभव है, अगर है तो कैसे ?
आज के भौतिवादी युग में एक ओर जहां बहुत से लोग ईश्वर की सत्ता को नकारते हैं वही इनको मानने वालो की भी कमी नहीं है। वो बात अलग है कि जब - जब इंसान मुसीबत में फसता है फिर न मानने वाले भी ईस्वर को मानना शुरू कर देते है। इस मामले मे ये कहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं की मानव सदा से ही लालची रहा है।
इंसान जब सबकुछ से परिपूर्ण होता है उस समय वो भगवान क्या अपने माँ-बाप को भी भूल जाता है लेकिन जैसे ही कोई मुसीबत आया नहीं कि सब काम छोडकर ईस्वर कि आराधना में लग जाता है। इसलिए नहीं कि उसने ईश्वर कि सत्ता को स्वीकार कर लिया है, बल्कि इसलिए कि किसी तरह वर्तमान समस्या से छुटकारा मिले।
कहते है हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है। जहां एक ओर ईश्वर कि सत्ता को नकारने वाले लोग है वही ऐसे लोगों कि भी कमी नहीं जो केवल ईस्वर कि सत्ता को मानते हैं बल्कि उनको महसूस या कहें वहाँ तक पहुँचने का भी प्रयत्न करते है। जब-तब हमें सुनने को मिलता है कि फलाने मंदिर में किसी ने लाखों-कडोरों का दान कर दिया। क्यों? क्योंकि रात उसे स्वप्न में अपने एष्टदेव दिखाई दिये थे।
क्या ये संभव है? किसी को स्वप्न में अपना इष्टदेव, जिस किसी कि भी वो दिन रात आराधन करता है, दर्शन हो जाये। अपने यहाँ एक बड़ा ही प्रशिद्ध कहावत है:"प्रयास करने से भगवान भी मिल जाते हैं।" प्रयास सही तरीके से किया जाय, सही दिशा में किया जाय तो कुछ भी असंभव नहीं। दशरथ माझीं का नाम आपने सुना होगा? अकेले आदमी ने अपने अथक प्रयाश से अकेले, अपने वर्षों के मेहनत से पहाड़ में एक लंबा रास्ता बना दिया। क्या पहले किसी ने ऐसा काम किया? क्या उसके बाद किसी ने कोशिश कि? क्या आप ऐसा कर सकते है, शायद नहीं, क्योकि इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिये।
अक्सर हम अपने धर्म शास्त्रो में पढ़ते हैं, सिनेमा, सीरियल में देखते है कि पहले के समय में हमारे ऋषि-मुनि देवता को प्रशन्न करने के लिए घोर साधना करते थे, जिनका उनको उचित परिणाम भी मिलता था। फिर आज क्यों नहीं? क्या साधना में कहीं कोई कमी रह जाती है। अगर इसका जबाव मैं हाँ में दूँ तो गलत नहीं होगा।
फिर सवाल उठता है अगर ऐसा है तो प्रयास कैसे किया जाय? ध्यान रहे हमारे ऋषि-मुनि शास्त्र के साथ-साथ योग के भी ज्ञाता होते थे। पूजा- अर्चना उनका नित्य कर्म था, लेकिन भग्वत प्राप्ति के लिए वो घोर साधना करते थे जिसमें योग का अहम महत्व था। योग साधना कि शक्ति को पश्चिमी सभ्यता ने भी स्वीकार कर लिया है।
हमारे बीच एक ग़लत धारणा फैली हुई है कि धर्म आस्था का विषय है और इसे कैसे भी किया जा सकता है, ये धारणा ग़लत है हमारे धर्म ग्रंथों में
योग को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है| आज हम सब योग के महत्व को जानते है, लेकिन इतना हि जानते है कि योग करने से शरीर स्वस्थ
रहता है जबकि योग इससे आगे कि चीज़ है| योग और धर्म का गहरा संबंध है| शस्त्रों के हिसाब से योग का अर्थ ही है आत्मा और परमात्मा का
मिलन, तो सवाल उठता है एक भक्त उस अवस्था में कैसे पहुँचे जहाँ उसे अपने इष्टदेव के दर्शन हो| क्या इसके लिए किसी राकेट साइंस कि ज़रूरत है, श्मशान साधने कि ज़रूरत है अथवा महँगी भेंट चढ़ाना चाहिए| जी नहीं मेरे हिसाब से इस सब कि कोई ज़रूरत नहीं है, बस योग के रास्ते प्रयास करना चाहिए| सफलता निश्चित है| योग का एक अंग है त्रातक| इसी
त्रातक के द्वारा अपने अंतर्मन को जागृति करने से हम उस अवस्था में
पहुँच जाएँगे जहाँ हमें अपने अराध्य देव से मिलन होगा| आइए अब जानते हैं त्रातक और अंतर्मन क्या है?
इंसान जब सबकुछ से परिपूर्ण होता है उस समय वो भगवान क्या अपने माँ-बाप को भी भूल जाता है लेकिन जैसे ही कोई मुसीबत आया नहीं कि सब काम छोडकर ईस्वर कि आराधना में लग जाता है। इसलिए नहीं कि उसने ईश्वर कि सत्ता को स्वीकार कर लिया है, बल्कि इसलिए कि किसी तरह वर्तमान समस्या से छुटकारा मिले।
कहते है हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है। जहां एक ओर ईश्वर कि सत्ता को नकारने वाले लोग है वही ऐसे लोगों कि भी कमी नहीं जो केवल ईस्वर कि सत्ता को मानते हैं बल्कि उनको महसूस या कहें वहाँ तक पहुँचने का भी प्रयत्न करते है। जब-तब हमें सुनने को मिलता है कि फलाने मंदिर में किसी ने लाखों-कडोरों का दान कर दिया। क्यों? क्योंकि रात उसे स्वप्न में अपने एष्टदेव दिखाई दिये थे।
क्या ये संभव है? किसी को स्वप्न में अपना इष्टदेव, जिस किसी कि भी वो दिन रात आराधन करता है, दर्शन हो जाये। अपने यहाँ एक बड़ा ही प्रशिद्ध कहावत है:"प्रयास करने से भगवान भी मिल जाते हैं।" प्रयास सही तरीके से किया जाय, सही दिशा में किया जाय तो कुछ भी असंभव नहीं। दशरथ माझीं का नाम आपने सुना होगा? अकेले आदमी ने अपने अथक प्रयाश से अकेले, अपने वर्षों के मेहनत से पहाड़ में एक लंबा रास्ता बना दिया। क्या पहले किसी ने ऐसा काम किया? क्या उसके बाद किसी ने कोशिश कि? क्या आप ऐसा कर सकते है, शायद नहीं, क्योकि इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिये।
अक्सर हम अपने धर्म शास्त्रो में पढ़ते हैं, सिनेमा, सीरियल में देखते है कि पहले के समय में हमारे ऋषि-मुनि देवता को प्रशन्न करने के लिए घोर साधना करते थे, जिनका उनको उचित परिणाम भी मिलता था। फिर आज क्यों नहीं? क्या साधना में कहीं कोई कमी रह जाती है। अगर इसका जबाव मैं हाँ में दूँ तो गलत नहीं होगा।
फिर सवाल उठता है अगर ऐसा है तो प्रयास कैसे किया जाय? ध्यान रहे हमारे ऋषि-मुनि शास्त्र के साथ-साथ योग के भी ज्ञाता होते थे। पूजा- अर्चना उनका नित्य कर्म था, लेकिन भग्वत प्राप्ति के लिए वो घोर साधना करते थे जिसमें योग का अहम महत्व था। योग साधना कि शक्ति को पश्चिमी सभ्यता ने भी स्वीकार कर लिया है।
हमारे बीच एक ग़लत धारणा फैली हुई है कि धर्म आस्था का विषय है और इसे कैसे भी किया जा सकता है, ये धारणा ग़लत है हमारे धर्म ग्रंथों में
योग को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है| आज हम सब योग के महत्व को जानते है, लेकिन इतना हि जानते है कि योग करने से शरीर स्वस्थ
रहता है जबकि योग इससे आगे कि चीज़ है| योग और धर्म का गहरा संबंध है| शस्त्रों के हिसाब से योग का अर्थ ही है आत्मा और परमात्मा का
मिलन, तो सवाल उठता है एक भक्त उस अवस्था में कैसे पहुँचे जहाँ उसे अपने इष्टदेव के दर्शन हो| क्या इसके लिए किसी राकेट साइंस कि ज़रूरत है, श्मशान साधने कि ज़रूरत है अथवा महँगी भेंट चढ़ाना चाहिए| जी नहीं मेरे हिसाब से इस सब कि कोई ज़रूरत नहीं है, बस योग के रास्ते प्रयास करना चाहिए| सफलता निश्चित है| योग का एक अंग है त्रातक| इसी
त्रातक के द्वारा अपने अंतर्मन को जागृति करने से हम उस अवस्था में
पहुँच जाएँगे जहाँ हमें अपने अराध्य देव से मिलन होगा| आइए अब जानते हैं त्रातक और अंतर्मन क्या है?
अंतर्मन (Sub Conscious Mind)
हम दुनियाँ कि पहली सभ्यता है जिसने मन के दो हिस्सों को स्वीकार किया। पहला बाह्य मन और दूसरा अंतर्मन। ये अलग बात है कि अब पश्चिमी सभ्यता के लोग भी इस बात को स्वीकार करते है।
हम जागृति अवस्था में जो कुछ सोचते विचार करते है वो सब अपने बाहर मन से जो हमारे बस में हैं| जब बाहरी मन अपना काम करना बंद करता है तो अंतर्मन अपना काम शुरू कर देता है| जैसे कि हम सोते हि स्वप्न
देखना शुरू करते है| हमारा बाहरी मन चालाक होता है, ये तर्क करता है|
अगर हमें कोई कहता है कि तुम बीमार हो तो हमारा बाहरी मन सोचता है, तर्क करता है कि वाकई में मैं बीमार हूँ या अगला वैसे हि बकवास किए जा रहा है| हमारा अंतर्मन बेवकूफ़ होता है, ये तर्क नहीं करता| ये सीधे-सीधे मान लेता है| अगर हमारा बाहरी मन तर्क नहीं करे तो अंतर्मन तुरत मान लेगा कि मैं बिमार हूँ| उदाहरण स्वरूप अगर दिनभर में दश आदमी
कहे कि तुम बीमार हो तो हमारा बाहरी मन धीरे-धीरे तर्क करना बंद कर देता है और हमारा अंतर्मन हावी होकर स्वीकार
कर लेता है कि मैं बीमार हूँ और हम शाम तक बिमार हो जाते हैं|
हमारा अंतर्मन बेवकूफ़ होने के बावजूद है बड़ा हि शक्तिशाली| जो काम
हमारा बाहरी मन नहीं कर सकता वो काम हमारा अंतर्मन कर सकता है| जैसे हमारा बाहरी मन भूत-भविष्य में नहीं देख सकता लेकिन अंतर्मन देख सकता है| यहाँ तक कि ये पिछले या अगले जन्म तक दौर लगा सकता है| ये हमेशा भागता रहता है| ये हमारे वश में नहीं रहता, ज़रूरत होती है इसी अंतर्मन को अपने वश में करने कि| अगर हम इसको एकबार वश में कर लेते है फिर हम इससे वो
सब काम करा सकते है जो ये कर सकता है जैसे भूत-भविष्य देखना या दूर बैठे किसी घटना को जानना| हमारे ऋषि-मुनि इस अंतर्मन और इसके ताक़त को हज़ारो वर्ष पूर्व पहचान गये थे|
उन्होने जन कल्याण कि भावना से इसको साधने के तरीके शास्त्रों में
बतलाया| लेकिन हम पश्चिम सभ्यता कि ओर आकृष्ट होते गये| पश्चिम वाले जिनको इस अंतर्मन के बारे में कुछ भी पता नहीं था । जब उन्होने इसकी ताक़त को जाना तो वो फ़ायदे उठाने में हमसे आगे
निकल गये| आज पश्चिम जगत चिकित्सा के क्षेत्र में इससे फ़ायदा उठा
रहा है और हम मुँह उठाए आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहे हैं| इसी अंतर्मन को अपने वश में करने का तरीका है त्रातक|
हमारा बाहरी मन नहीं कर सकता वो काम हमारा अंतर्मन कर सकता है| जैसे हमारा बाहरी मन भूत-भविष्य में नहीं देख सकता लेकिन अंतर्मन देख सकता है| यहाँ तक कि ये पिछले या अगले जन्म तक दौर लगा सकता है| ये हमेशा भागता रहता है| ये हमारे वश में नहीं रहता, ज़रूरत होती है इसी अंतर्मन को अपने वश में करने कि| अगर हम इसको एकबार वश में कर लेते है फिर हम इससे वो
सब काम करा सकते है जो ये कर सकता है जैसे भूत-भविष्य देखना या दूर बैठे किसी घटना को जानना| हमारे ऋषि-मुनि इस अंतर्मन और इसके ताक़त को हज़ारो वर्ष पूर्व पहचान गये थे|
उन्होने जन कल्याण कि भावना से इसको साधने के तरीके शास्त्रों में
बतलाया| लेकिन हम पश्चिम सभ्यता कि ओर आकृष्ट होते गये| पश्चिम वाले जिनको इस अंतर्मन के बारे में कुछ भी पता नहीं था । जब उन्होने इसकी ताक़त को जाना तो वो फ़ायदे उठाने में हमसे आगे
निकल गये| आज पश्चिम जगत चिकित्सा के क्षेत्र में इससे फ़ायदा उठा
रहा है और हम मुँह उठाए आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहे हैं| इसी अंतर्मन को अपने वश में करने का तरीका है त्रातक|
त्राटक (Eye Concentration )
भारतीय योगदर्शन में शरीर शुद्धि के छ: कर्म बतलाए गये है| वस्ति, धौति, नौलि, नेति, कपालभाँति और त्रातक| इसमें त्रातक सबसे महत्वपूर्ण और काम कि चीज़ है| किसी भी विंदु, दीपक अथवा मूर्ती पर बिना पलकझपकाये टकटकी लगाकर देखने कि क्रिया को त्रातक कहते हैं| त्रातक से
दृष्टि स्थिर होती है दिमाग़ विचार शून्य बनता है| नेत्र बंद होने पर तुरंत ध्यान लग जाता है और जीवन में पूर्णता प्राप्त होती है| लगातार कुछ दिनों तक त्रातक क्रिया करने से कई प्रकार कि सिद्धियाँ प्राप्त होती है जैसे
किसी को सम्मोहित कर सकते है इत्यादि|वैसे तो त्रातक करने के भी कई तरीके हैं लेकिन हम यहाँ केवल मूर्ती त्रातक कि चर्चा करेंगे| आइये जानते हैं कैसे करे मूर्ति त्रातक सिद्धि|
त्रातक करने के तरीके :
ज़बरदस्ती न करें| आँख में पानी आने अथवा दर्द होने पर कुछ देर के लिए आँख बंद कर लें| एक बैठक में आधा घंटा यह क्रिया करें| पूरे दिन में पाँच-सात बार यह क्रिया कर सकते है|
मूर्ति को आँख में आँख मिलाकर देखने के बाद जब आँख बंद करें तो बंद आँख से मूर्ति को देखने कि कोशिश करें| कुछ दिन प्रयाश के बाद आँख बंद करने पर आपको कभी रोशनी, कभी कोई दृश्य जैसे नदी, तालाब, जंगल जिसको पहले कभी आपने नहीं देखा, कभी क्षण भर के लिए आपको मूर्ति भी दिखाई देगा| समझ लीजिए आपका प्रयाश सफल हो रहा है| इन सब
दृश्यों को देखने में जो आपको आनंद कि अनुभूति होगी विश्वास किजिये आपने कभी कल्पना तक नहीं किया होगा| इस दरम्यान आपको कभी
डरावनी दृश्य भी दिखाई देगा, घबराने कि ज़रूरत नहीं है| प्रयाश जारी रखें, जल्दी ही आप उस मुकाम तक पहुँच जाएँगे जिसके लिए आपने ये शुरू किया था| इसके अन्य फ़ायदे भी हैं जैसे हमारा मन जो दश जगह भटकता रहता है वो एकाग्र होना शुरू हो जाता है, हमारी शारीरिक उर्जा बढ़ जाती है जिससे स्वस्थ होते है, आत्मविश्वास बढ़ता है और काम करने कि क्षमता बढ़ जाती है|
दृश्यों को देखने में जो आपको आनंद कि अनुभूति होगी विश्वास किजिये आपने कभी कल्पना तक नहीं किया होगा| इस दरम्यान आपको कभी
डरावनी दृश्य भी दिखाई देगा, घबराने कि ज़रूरत नहीं है| प्रयाश जारी रखें, जल्दी ही आप उस मुकाम तक पहुँच जाएँगे जिसके लिए आपने ये शुरू किया था| इसके अन्य फ़ायदे भी हैं जैसे हमारा मन जो दश जगह भटकता रहता है वो एकाग्र होना शुरू हो जाता है, हमारी शारीरिक उर्जा बढ़ जाती है जिससे स्वस्थ होते है, आत्मविश्वास बढ़ता है और काम करने कि क्षमता बढ़ जाती है|
अगर आप केवल आखों कि शक्ति बढ़ाने के लिए करना चाहते है तो मूर्ति जगह पर कोई बिन्दु, दीपक इत्यादि का प्रयोग कर सकते है।
आशा है आपको ये पोस्ट पसंद आया होगा। अगर आपको को लगे कि पोस्ट अच्छा है तो इसको अपने दोस्तों को share करे और नीचे एक comment जरूर करे।
बढ़िया जानकारी।
comment के लिए धन्यवाद ।